बाघोपुर की स्वप्नौति वैष्णवी दुर्गा मैया : किसी शक्ति पीठ से कम नहीं,पाँच हजार एक सौ कुमारी कन्याओं को सम्मान के साथ कराई जाती है भोजन और अर्थ ,वस्त्र, दान ।

राम सुखित सहनी के कलम से :—-
* मैया के दरवार में निश्छल भाव से मांगने वाले अब तक हर भक्तों की हुई है मन्नतें पूरी।
* माता की महिमा से गांव का हुआ कायाकल्प।
* शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है बाघोपुर की स्वप्नौति वैष्यणवी दुर्गा मैया।
* 5100 पाँच हजार एक सौ कुमारी कन्याओं को सम्मान के साथ कराई जाती है भोजन और अर्थ ,वस्त्र, दान देकर की जाती है विदाई।
* बलि प्रथा एवं चंदा का नहीं है प्रावधान।
* दान स्वरूप अर्थ से हीं होती आ रही है माँ की पूजा।
* मूर्ति पूजा हेतु मनोकामना पूर्ण 250 भक्तों की लगी है लाईन।
* हर नौवीं को होती है माँ की विधिवत पूजा – अर्चना।
* माता के दरवार में नहीं बजती है अश्लील गीत।
* पूर्व काल से ही काँधे पर होते आ रहा है माता के प्रतिमाओं का विसर्जन

समस्तीपुर शहर से 24 किलो मीटर पूरब व रोसड़ा से 12 किलो मीटर उत्तर एवं उदयनाचार्य जन्म स्थली से एक किलो मीटर पश्चिम बागमती नदी के किनारे अवस्थित लगभग 250 वर्ष पुरानी है वैष्णवी दुर्गा मैया के महिमा की कहानी जो घर – घर की बनी जुबानी।

मैया के शक्ति पीठ की प्राचीनता :——–
विदित हो कि पूर्व काल में जनश्रुति है कि स्थानीय चुल्हाई धोबी निःसंतान थे ,लेकिन माता का परम भक्त थे। वे प्रत्येक दिन नित्य नियम के साथ मैया की पूजा – पाठ ,आरती व भोग लगाकर ही भोजन किया करते थे ।
मैया ने भक्त चुल्हाई के भक्ति से प्रसन्न हो उन्हें स्वप्न में पुत्र प्राप्ति का वरदान दी एवं मूर्ति पूजा करने का भी निर्देश दी।
भक्त चुल्हाई की भक्ति रंग लाई ,मैया के आशीर्वाद से एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। भक्त चुल्हाई ने उसी वर्ष आश्विन नवरात्रा में अपने घर में ही स्वंग छोटी मूर्ति पीढ़ी पर बनाकर स्वप्नौति वैष्णवी माता का पूरे भक्ति भाव से पूजा – अर्चना समाज से चुरा कर किया करते थे और माता का विसर्जन भी अंधेरी रात में बगल के पोखड़ में कर दिया करते थे।कुछ वर्षों बाद जब समाज को माता की महिमा व भक्त चुल्हाई की भक्ति की लीला की सुधि हुई ।तब कालांतर के मध्य काल में स्थानीय भक्त सुकुमार सहनी के दरवाजे सह बरगद,पीपल,पाकर पेड़ के नीचे दिहवाड़ बाबा गहवर के बगल में टाट – फूस का मंदिर बना वृहत रूप में सामूहिक पूजा किया गया। माता की महिमा से प्रभावित स्थानीय जमींदार संत महतो ने माता के मंदिर वास्ते 1कट्ठा 7 धूर जमीन दान दिए । यथा स्थान माता व दिहवाड़ बाबा का मंदिर ईंट – खपड़ा का बना कर पूजा अर्चना किया गया।

वर्तमान काल में मैया के स्थल की महिमा, रचना – संरचना व रूप – रेखा पर एक नजर :——
बताते चलें कि 1 कट्ठा 7 धूर जमीन के परिसर में अवस्थित वैष्णवी दुर्गा मैया का दक्षिण मुख का सिंह दरवार अति सुन्दर,मनमोहक ,सर्वदा मन को हर्षित व आकर्षित करता है।इसके पूरब में सटे दो मंजिल का हनुमान मंदिर व 10 नं0 का पक्की रोड जो रोसड़ा – हथौड़ी पथ नाम से फेमस है।पश्चिम में सटे दिहवाड़ बाबा का गहवर व बागमती नदी का बांध है जो मैया के दरवार का गौरव है।उत्तर – पश्चिम में मैया के व्यवस्था हेतु धर्मशाला व पीपल पेड़ की शांति छाया सह निर्मल जल का भंडार जो शांति – सुख – संतुष्टि प्रदान करती है।
सिंह दरवार के मुख्य द्वार के सामने दक्षिण में बड़ा सा फील्ड एवं बरगद का पेड़ व बांध जहाँ कतार में सज्जी दुकाने जो दरवार के सुंदरता को बढ़ाता है।

रोसड़ा अनुमंडल परिक्षेत्र ही नहीं समस्तीपुर जिले के आसपास के दर्जनों गांव के लोग श्रद्धा के साथ मैया के दर्शन के लिए आते हैं। इस मैया के प्रति लोगों की आस्था इतनी अधिक है की हर अश्विन एवं चैत्र नवरात्रा को तकरीबन 3000 कुमारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है ।भोजन से पूर्व इन कन्याओं को सुपारी एवं अक्षत देकर न्यौता दिया जाता है। प्रत्येक घर से दूध, चावल, चीनी ,धूप-दीप, अर्थ हर कोई माता के दरबार में पहुंचाते हैं फिर भोजन कराया जाता है और उन्हें सम्मान के साथ विदाई दी जाती है । सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इतने वृहत पैमाने पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है किंतु बिना किसी चंदा के।

वहीं दूसरी ओर भक्तों का विश्वास इतना अधिक है कि माता की जयकारा के साथ एक अद्भुत भक्तिमय शमा बांधती है और उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। इसी वजह से यह एक शक्तिपीठ का रुप ले चुकी है और गांव वालों की मदद से ही 1935 में एक मंदिर बनाया गया जो अब भव्य रूप ले चुका है।
सबसे अहम बातें सामने आती हैं वह है बलि प्रथा का नहीं होना , माता की महिमा से अबतक क्षेत्र के सैकड़ों भक्तों की मन्नतें पूरी हुई है । ऐसे भक्तों की सूची में पूजा समिति के अध्यक्ष जनक महतो की माने तो कहते हैं कि गांव के चुल्हाई धोबी के बाद रुदल साह निःसंतान थे किंतु माता ने उन्हें भी एक पुत्र रामकुमार साह के रूप में देकर उनके घर भर दिए। माता की महिमा से जगत नारायण लाल (ड्रग इंस्पेक्टर ),अशोक कुमार सिंह उर्फ मुन्ना दो दो बार विधायक और मंत्री रामचंद्र पासवान सांसद समस्तीपुर अशोक कुमार राम विधायक रोसड़ा, विश्वनाथ पासवान की पत्नी जिला परिषद अध्यक्ष, रामचंद्र सहनी ( कनीय अभियंता), राजेंद्र सहनी( सेल टैक्स पदाधिकारी ) बने। यह तमाम ऐसे भक्त हैं जो हर साल माता के दरबार में सपरिवार माथा टेकने जरूर आते रहे हैं। इन भक्तों को माने तो सबसे चमत्कारी महिमा का नजारा लोगों को तब दिखाई दिया जब 1987, 2,000 और 2004 के प्रलयकारी भयंकर बाढ़ की चपेट में भी बाघोपुर गांव पूर्णतया सुरक्षित रहे। जिससे भक्तों में माता के प्रति और अधिक, आस्था और विश्वास जागा तब से कोई भी कष्ट या अनिष्ट या दु:ख का दौर लोगों के लिए शुरू होता तो लोग दूर- दूर से आकर माता के दरबार में एक पैर पर खड़े होकर माँ-माँ या जय माता दी की पुकार करते हैं, इससे उनका कष्ट दूर हो जाते और यह सिलसिला लगातार अब तक चलती आ रही है। इतना ही नहीं ,अब तो यहाँ शादी ,मुंडन संस्कार एवं खोईंछा भराई का महत्व बढ़ता ही जा रहा है। माँ की महिमा से गाँव में वैष्णव भक्तों की संख्या बढ़ने लगी। पूरा गाँव भक्ति मय होता जा रहा है ।

बताते चलें मेला की व्यवस्था को बनाए रखने में पूजा समिति के सदस्यों के अलावा गाँव के हर युवक – युवती, नर – नारी,हर समय सक्रिय रहते हैं।
रामदास महतो :— मैया की बदौलत आज मेरे पास दो-दो पेट्रोल पंप है। शिव दुर्गा फ्यूल और मां अंबे फ्यूल ।नहीं तो मैं किसान का बेटा था। कहाँ से यह सब हो पाता । बस माँ के दरबार में नियमित रुप से भक्ति में लगा रहा और माता ने मेरी सुन ली।
रामाशीष सहनी :——- माता रानी की कृपा से ही आज मैं मध्य विद्यालय बाघोपुर का प्रभारी हूँ। ट्यूशन पढ़ाकर मैं पढ़ाई करता था । एक गरीब मल्लाह का बेटा हूँ। माता की कृपा से ही मुझे नौकरी मिली । सच में जो भी लोग मनसे मैया की पूजा-अर्चना किया है, मैया उसकी आवाज जरूर सुनी है । जय माता दी।
पंडित हरिओम पाठक :—–मैं गरीब ब्राह्मण का बेटा हूँ। मेरे पिताजी को टीवी की बीमारी थी । घर की हालत बदतर थी। लोग जजमानी के लिए बुलाना छोड़ दिए थे। एक दिन पिताजी माँ के दरबार में गए और मन से पूजा पाठ की। घर की स्थिति सही होने लगी। लोग बाबूजी को पूजा के लिए बुलाने लगे। सच कहिए तो यह सब माता रानी की ही अद्भुत महिमा है।जय माता दी।नारायण महतो—- मेरा पूर्वज डब्बा में रोड किनारे पेट्रोल बेचते थे।हम साईकिल का पंचर बनाया करता था।आज माता के कृपा से साईकिल का थोक विक्रेता बन गया हूँ।माता की बहुत बड़ी कृपा हमारे परिवार पर है। जय माता दी
इस तरह से सैकड़ों भक्त की मन्नते पूरी हुई है।
* पंडित- दुर्गेश पाठक
* मुख्य जजमान- मनोज महतो,शिबू राम,बंदन महतो।
व्यवस्थापक-पूजा समिति के अध्यक्ष जनक महतो,समिति के सभी सदस्यगण संग सक्रिय सदस्य राम दास महतो,नारायण महतो,मिथिलेश सहनी, चुन चुन सहनी, कमलदेव सहनी, किशोरी सहनी, ओम प्रकाश लाल,रघुवीर स्वर्णकार,अवध किशोर महतो,राम विलास महतो,बीसो यादव,छोटे शर्मा,गंगा प्रसाद महतो,सुधीर सहनी, विजय सहनी, सुरेंद्र महतो, एवं समस्त ग्राम वासी गण

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