होली के दो स्प्ताह पूर्व से ही गांव में उत्सव का माहौल कायम रहता है। होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन की संध्या से ही पूरब, पश्चिम एवं उत्तर टोले में निर्धारित स्थानों पर अलग अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन जारी रहता है। दूर-दूर से आए मशहूर बैंड पार्टी के बीच कलाकारों के बीच कंपटीशन होती है प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले को पुरस्कार से भी नवाजा जाता है। इस दौरान क्षेत्र के हजारों लोग उपस्थित रहते हैं। बड़े बड़े तोरण द्वार और चमचमाते रोशनी के बीच सम्पूर्ण गांव पूरी रात जगमगाहट रहता है।
होली के दिन भी नृत्य का आनन्द लेने के पश्चात तीनों टोली दोपहर बाद गांव में स्थित फगुआ पोखर पहुंचते हैं जहां पूरे गांव के रंगो की पिचकारी से पोखर का पानी को गुलाबी रंग किया जाता है। इसके पश्चात गाने की धुन पर एक दूसरे को रंग डालकर जश्न मनाते हैं भिरहा की होली न सिर्फ मिथिलांचल में बल्कि प्रदेश स्तर पर इसकी एक अलग पहचान है। गांव के शिक्षक विनय कुमार राय ने बताया कि 1835 में गांव के कई गणमान्य लोग एक साथ होली देखने वृन्दावन गए थे।
वहां के होली ने उन्हें मन मोह लिया और वहां से लौटने के पश्चात ग्रामीणों द्वारा लिये गए निर्णयों पर वर्ष 1936 से भिरहा में ब्रज की तर्ज पर होली उत्सव मनाना प्ररंभ किया। उसके बाद वर्ष 1941 में यह गांव तीन भागों में बंटकर होली मनाने लगा।
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