SAMASTIPUR BIHAR:-विभूतिपुर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय, समस्तीपुर के तत्वावधान में सिंघिया घाट के दुर्गा स्थान के समीप चल रहे सात दिवसीय राजयोग मेडिटेशन शिविर के दौरान ब्रह्माकुमारी सोनिका बहन ने कालचक्र के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हर काम समय को ध्यान में रखकर ही किया जाता है और हर काम का एक निश्चित समय होता है। यदि सही समय पर सही कार्य नहीं किया गया तो समय ही कार्य की सफलता को नष्ट कर देता है।
इसलिए वर्तमान समय की पहचान आवश्यक है। यह वह सृष्टि का महानतम कालखंड चल रहा है जब स्वयं भगवान इस धरा पर अवतरित होकर मानव के संस्कार को परिवर्तित कर इस संसार का परिवर्तन बड़ी तीव्र गति से कर रहे हैं। और यह प्रक्रिया बड़ी ही सुखकारी है क्योंकि स्वयं भगवान हमारे भाग्य तराशता है…. हमें अपनी श्रेष्ठ मत देकर श्रेष्ठ कर्म द्वारा इस थोड़े से समय में अपनी तकदीर की लंबी लकीर खींचने की कलम हमें थमा देता है। यह युग कलियुग अंत और सतयुग आदि के मध्य की वेला पुरुषोत्तम संगमयुग कहलाता है। एक इस युग में ही हम आत्माओं का परमात्मा से अनोखा मिलन होता है और हम पापात्मा से पुण्यात्मा-देवात्मा बनते हैं। अब इस युग का थोड़ा सा बचा वक्त भी बीता जा रहा है। इसलिए अभी नहीं, तो कभी नहीं।
उन्होंने लंबे समय से चली आ रही मान्यता पर से असत्य का पर्दा हटाते हुए बताया कि सत्यम् शिवम् सुंदरम् आकर हमें सत्य से अवगत कराते हैं कि मनुष्यात्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण नहीं करती, अपितु अधिक से अधिक 84 जन्म लेती है। यदि 84 लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद मनुष्य योनि मिलती है तो इस योनि में किसी को बहुत दुःख और किसी को बहुत सुख क्यों? मनुष्यात्मा को सुख और दुःख भोगने के लिए किसी और योनि में जाने की आवश्यकता नहीं।
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