विवाह के बाद सावित्री भी साथ रहने लगी, सत्यवान की मृत्यु के समय पहले ही बता दिया गया था, सबसे पहले सुभाष करने लगी जब सत्यवान की मृत्यु का दिन आया तो लकड़ी काटने के लिए जंगल गया था, सत्यवान जैसे पेड़ पर चढ़ने लगा तो उनके सिर में तेज दर्द हुआ वह वट के नीचे आकर सावित्री की गोद में सिर रख कर लेट गए कुछ समय बाद सबने देखा कि यमराज के दूत सतवान को लेने आए हैं। वही सावित्री यमराज के चलने लगी तो यमराज ने कहा की सत्यवान के बिना ही अकेले सफर तय करना होगा। वही सावित्री ने कहा कि मेरा पति जहां जाएगा मैं उन्हीं के पीछे आऊंगी, यही धर्म है यमराज सावित्री के पतिवर्ता धर्म से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने का सावित्री ने अपने ससुर की आंखें मांगी उसके बाद आगे बढ़ने पर यमराज ने उन्हें एक वर मांगने को कहा उसने अपने सास ससुर के खोए हुए राज्य पाठ का वर मांगा उसके साथ चलने लगी तब यमराज ने सौ पुत्रों का वर दिया और सत्यवान प्राण लौटा दिया। वही सावित्री लौटकर ओवर ब्रिज के पास आए और देखा कि सत्यवान जीवित हो गया ऐसे में इसी दिन पति की लंबी आयु सुख शांति ऐश्वर्य के लिए व्रत रखा जाता है।
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