प्राकृतिक संग प्रकृति आ अपन मिथिला धाम मे आयल मेहमान चिड़ै-चुंमुन्निक रक्षा- सुरक्षा जुड़ल अछि सामा-चकेवाक पावनि सँ।
अपन देश मे शास्त्रीय पावनि आओर उत्सवक अलावा रंग-विरंगक लोक पावनि केँ नमहर लाइन अछि। लोक आस्थाक सब सँ खूब बढ़ियाँ पावनि बिहार केँ मिथिला धाम मे सब साल मनाओल जाए वाला सामा- चकेवा पावनि केँ गिनल जाएत अछि। भाई-बहिनक कोमल आओर अटूट प्रेमक संदेश एहि पावनि सँ मिलैत अछि।
सामा- चकेवा ई पावनि आठ दिनक शुरूआत छठ केँ भिंसुड़की अर्ग पारणक बाद कार्तिक मासक शुक्ल पक्ष केँ सप्तमी सँ शुरूआत होईत अछि आ कार्तिक मास पूर्णिमाक दिन खत्म होईत अछि। श्यामा वा सामा कृष्णक पुत्री थीक आओर साम्ब जेकरा मैथिलि मे सतभइयां वा चकेवा केँ नाम सँ जानल जाईत अछि, श्यामक पुत्र -पुत्री श्यामा-चकेवा दूनू भाय-बहिन मे बच्चे सँ अगाध प्रेम छल। श्यामा, प्राकृतिक – प्रकृति आ गाछ-वृक्ष,नेन्हा पौधा सँ स्नेह होवाक कारण बेसी काल चिड़ै-चुंमुन्नि , गाछ- वृक्ष आओर फूल-पत्ती केँ संग खेलैत बितवैत छलीह। वो अपन दासी डिहुली केँ संग वृंदावन जाकअ मुनि सभक बीच हँसैत-खेलैत छलीह।
कृष्णक मंत्री चुरक जे कालांतर में चुगला नाम सँ जानल गेल वो सामा के खिलाफ कृष्णक कान भरै कए शुरू कअ दलक। वो सामा पर वृन्दावन केँ एकटा तपस्वीक संग अवैध संबंधक आरोप लगैलक। हूनक एहि आरोप सँ कृष्ण क्रुद्ध भअ अपन पुत्रीक पक्षी बनि जएवाक श्राप देलैन्हि।सामा मनुष्य सँ पक्षी बैनि वृंदावनक वन-उपवन मे रहै लगलीह। सामा केँ पक्षी रूप मे देखि वोतअ केँ साधु-संत सेहो पक्षी बनि गेल। जखन सामा केँ भाई चकेवा केँ एहि बातक सुधि भेल तँ वो व्याकूल भअ अपन पिता केँ समझावै-बुझावै आ मनावै केँ भरसक प्रयास कएलाह। कृष्ण केँ नहि मानला पर हठ योग पर बैसि गेलाह। वो पुत्रक एहि हठ योग तपस्या सँ प्रसन्न भअ कअ वचन देलैन्हि कि सामा हर साल कार्तिक मास मे आठ दिनक लेल हूनक समीप रहतीह आओर कार्तिक केँ पूर्णिमाक दिन वो चलि जैतीह।
एहि करणे कार्तिक मास मे सामा आओर चकेवक मिलन भेल। वहि दिनक यादि मे आई तक सामा चकेवाक पावनि मनाओल जाईत अछि।
एहि पावनि मे सामा आओर चकेवाक जोड़ीक संग चुगला, वृन्दावन, बटगमनी, वृक्ष आ पक्षिक माटिक छोट-छोट मूर्ति बनाओल जाईत अछि। बाँसक रंग-विरंगक मौनी मे एहि मूर्तिक सजा कअ हूनक पूजा-अर्चना कएल जाईत अछि। साँझक काल गाम , नगर आ शहर सेहो मे नेन्हा ,जूआन आ बियाहल स्त्रीगण सभक टोली मैथिली लोकगीत गाबैत अपन-अपन घर सँ बाहर निकलैत अछि। | सामा खेलैत काल मैथिली लोक गीत सँ चारूओर बुझू जे झंकृत आ सोंहगर भअ जाईत अछि। गीत गाबैत आ सामा खेलैत काल एकदोसर मे ठेलम – ठेली , हंसी-ठट्ठा , मअर-मज़ाक संग ननद-भौजाई केँ चुहलबाजि सेहो शामिल होईत अछि। अंत मे चुगलखोर चुगला केँ मुँछ झड़कैलाक बाद सभ गोटे कंहाजोड़ी कअ वटगमनी गाबैत घर लौटि जाईत अछि | एहि तरहेँ वो आठो दिन खेलैत कार्तिक पूर्णिमा केँ अंतिम दिन बहीन अपन भाई केँ सतरंजा भूजा आ मिठाई खुआबैत आ फफड़ा भरैत अछि।
भाई , सामाक बिदागाड़ीक लेल रंग- विरंगक सजावट मे डोली,मंदिर,घर,नाव,जहाज,बत्
ख,रथ आदिक बेर बना कअ वहि पर सामाक सांठक सबटा समान आ खोईंछा दअ सजा कअ आ बाजा-गाजाक संग नदी,पोखड़ में भसाओल जाईत अछि। जाईत-जाईत चुगलाक मूंछ मे आगि लगा अपन-अपन भाई केँ लंबी आयुक कामना करैत आगू साल फेओर सामा -चकेवा केँ आबैक कामनाक संग पावनिक समापन होईत अछि।
एहि पावनि केँ संग प्राकृतिक आओर पर्यावरणक सच सेहो अछि। ई आयोजनक उद्धेश्य मिथिला धाम मे आबै वाला मेहमान पक्षिक रक्षा-सुरक्षा आओर सम्मान देनाय सेहो अछि। बरसात केँ बाद कार्तिक मास सँ सर्दिक शुरुआत होईत अछि। ताल-तलैया सँ भरल मिथिलाक मैदानी इलाक मे दूर-दराज़ सँ दुर्लभ प्रजातिक रंग-बिरंग केँ पक्षिक मेहमान रूप मे आगमन शुरू भअ जाईत अछि। ई पक्षी हिमालय वा सुदूर उत्तर केँ देश बरफ जमल इलाक सँ भागि एहि ईलाका में चरी करै आ जान बचाबै लेल आबैत अछि।किएक तअ एतअ सर्दी कम पड़ैत अछि आ पानिक सुविधा खूब रहैत अछि। मेहमान पक्षिक आगमनक शुरुआत सामा चकेवा नामक पक्षि केँ जोड़ा आबै सँ होईत अछि। एहि पक्षिक शिकारी सँ बचाबै आओर मनुष्य आ पक्षिक सनातन रिश्ता केँ मजबूती स्थायित्व दय केँ लेल हमार पूर्वज सामा चकेवा केँ धार्मिक मिथया प्रतीक गढ़लक। सामा चकेवा पक्षिक कल्पना कृष्ण केँ संतान केँ रूप मे कएल गेल। चुगलाक प्रतीक संभवतः पक्षिक शिकारी लेल अछि।
Leave a Reply