निशा सिंह रिपोर्टर
चार दिवसीय महापर्व यानी छठ पर्व की शुरुआत होने में बस एक दिन दूर है। दिवाली के बाद अब देशभर में छठ पूजा की तैयारी शुरू हो गई है। हालांकि यह पर्व बिहार झारखंड में बहुत प्रसिद्ध है, लेकिन आपको बता दें कि इन राज्यों से बहुत से लोग अलग-अलग राज्यों में जाकर अपना जीवन बसर कर रहे हैं। इसलिए देश भर में इस महापर्व को लेकर उत्साह देखा जाता है। साथ ही यह पर्व अपने-अपने परिवारों के साथ मनाने अलग-अलग राज्यों से लोग बिहार पहुंच रहे हैं। छठ पर्व के व्रत को महिलाएं व पुरुष दोनों रखते हैं। हालांकि ज्यादातर महिलाएं यह व्रत रखती हैं।
इस महापर्व को मनाने के लिए कई जगह पर घाट बनाना व सजाना भी शुरू हो गया है। इस पर्व को संपन्न करने के लिए नदी के किनारे घाट बनाया जाता है। जहां संध्या वह सुबह का अर्घ्य दिया जाता है। जहां नदी की सुविधा नहीं होती वहां व्रतियों के परिवार वाले घर के सामने छोटा सा गड्ढा खोद के और उसमें पानी डालकर उसे घाट बना के अपना पर्व संपन्न करते हैं।
आपको बता दें कि महापर्व छठ पूजा की शुरुआत 8 नवंबर यानि सोमवार से होगी। इस त्यौहार के पहले दिन को ‘नहाए खाए’ कहा जाता है। उस दिन छठ व्रतिया और उनके परिवार के लोग स्नान करके भगवान का प्रसाद सात्विक आहार चना दाल और कद्दू भात बनाते हैं। त्योहार के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है इस दिन व्रती भगवान को गुड़ की खीर का भोग लगाते हैं। उस दिन के बाद से उन्हें 36 घंटे तक के लिए निर्जला उपवास व्रत रखना होता है। इस उपवास को रखते हुए पर्व के तीसरे दिन को पूजा के लिए व्रतियों को ठेकुआ का प्रसाद बनाना होता है और संध्या यानि पहली अर्ध्य देने के लिए छठ का डाला सजाना होता है।
इस दिन सूर्यास्त के समय घाट पर व्रतियों और उनके परिवार भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। महापर्व के चौथे एवं अंतिम दिन पर उगते सूरज को सुबह का अर्घ्य दिया जाता हैं और इसी के साथ छठ व्रती अपना निर्जला उपवास भी समाप्त करते हैं और पूजा का प्रसाद अपने परिजनों और घाट पर आए लोगों में वितरित करते हैं। छठ पूजा के अंतिम दिन को पारण के रूप में भी जाना जाता है।
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