गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ। उपरोक्त बाते राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक अबू नसर साहब ने उच्च विधालय ताजपुर परिसर मे आयोजित ब्रेन साॕफ्ट सोसाइटी द्वारा सम्मान समारोह में कही ।
वही कार्यक्रम मे उपस्थित अन्य शिक्षकों ने कहा कि गुरु यानी शिक्षक की महिमा अपार है। उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, कवि, सन्त, मुनि आदि सब गुरु की अपार महिमा का बखान करते हैं। शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और ‘रू’ का अर्थ ‘उसका निरोधक’ बताया गया है, जिसका अर्थ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’ अर्थात अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला ‘गुरु’ होता है। गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है। सन्त कबीर कहते हैं।
अर्थात, गुरु और गोविन्द (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए, गुरु को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरु के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है, जिनकी कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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