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जैविक खेती का कमाल, किसान हुए मालामाल। अमारी के किसान अजित के प्रेरणा से लाभ ले रहे दर्जनों किसान।

बलवंत कुमार चौधरी (बेगूसराय) :

 

बेगूसराय छौड़ाही प्रखंड के अधिकतर लोग खेती, खेतिहर मजदूरी और पशुुपालनसे जुड़े कामों में लगे हैं।जिनमें बड़ी आबादी एक एकड़ से कम जमीन वाले छोटे किसानों की है।हरी सब्जियों की बाजारों में आपूर्ति का लगभग आधा हिस्सा इन्हीं छोटे किसानों का है।इधर के दिनों में रासायनिक खाद बीज के अत्यधिक प्रयोग के बाद सब्जियों की उपज स्थिर हो गई है। किसान जैविक खेती से प्रभावित हो जब इसका प्रयोग अपने खेतों पर किया तो आश्चर्यजनक परिणाम सामने आ रहा है। प्रखंड के अमारी निवासी अजीत कुमार के जैविक खेती के सफल प्रयोग एवं प्रोत्साहन से सब्जी खेती की परिभाषा ही बदल सी गई।न्यूनतम लागत अधिकतम आमदनी के आंखों देखी प्रयोग के बाद इलाके के दर्जनों किसानों ने जैविक खेती को अपनाया। अब कृषि विभाग भी इनके जैविक खेती के प्रयोग को अन्य किसानों को बता जमीन बचाने के साथ-साथ आमदनी बढ़ाने के तरीकों से अवगत करवा रही है।
बंपर आमदनी : जैैविक खेती भारतीय खेती किसानी के पौराणिक व्यवस्था का ही आधुनिक स्वरूप है।यह बात प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एवं प्रथम हरित क्रांति के गवाह रहे डॉ राम कृपाल सिंह कहते हैं।इन्हीं विधियों को किसानों ने अपने अपने तरीके से खेतों में प्रयोग किया। प्रखंड के अजीत कुमार ने खेतीबाड़ी के विभिन्न तरीकों से खेती के बारे में जानकारी के लिए कृषि अनुसंधान अनुसंधान परिषद् समेत देश के तमाम कृषि संबंधित संस्थाओं में भ्रमण कर उन्होंने जैविक खेती को अपने जमीन में प्रयोग करने का दृढ़ निश्चय किया।शुरुआत एक कट्ठा के सब्जी की खेती से की जो अब बढ़कर एक एकड़ में फैल चुका है।आमदनी इस सीजन सब खर्च काट कर 85 हजार रूपये हुआ।पहले इतना खेत से 20 से 25 हजार रूपये आमदनी हो पाता था।

कैसे करें जैविक खेती : अजित कुमार बताते हैं कि एकदम किफायती एवं आसान है जैविक खेती। जमीन की अच्छी तरह जुताई करके खरपतवार हटा दें।खेतों में वर्मी कंपोस्ट छिड़काव कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।दो-चार दिन छोड़कर जैविक पोषक का छिड़काव कर सब्जियों के बीज को लगा दें।जो भी बीज लगाइएगा लगभग 99 प्रतिशत अंकुरित हो पौधा बनेगा।जो एकदम निरोगी रहेगा। फूल आने से पहले एवं सब्जियों के हरेक तोराई के तुरंत बाद यानी सप्ताह में दो बार जैविक पोषक का घोल जिसकी लागत लगभग एक एकड़ में 200 रूपये आती है छिड़काव करें।जब तक सब्जियां हैं तब तक इस घोल का छिड़काव नियत अंतराल पर करने से सब्जियां हरा-भरा पौष्टिकता से परिपूर्ण रहती है।रासायनिक खाद और दवा की जरूरत नहीं होती है।

प्रयोग रहा सफल : अमारी के अरविंद कुमार, महिला किसान हेमा देवी, शंकर महतो, भोजा के सुरेश कुमार दास शिक्षक, छौड़ाही के गूजो महतो, पतला के रामबदन महतो गोरेलाल महतो, रजौरा के विमलेश कुमार महतो समेत दर्जनों किसानों ने तौ दो कट्ठा में जैविक खेती को अपनाया।बांकी जमीन में पहले के तरीके का भी प्रयोग करते रहे।दोनों के ऊपज में असमानता देख धीरे-धीरे इन किसानों ने रासायनिक खेती को बाय-बाय करते हुए पूर्णतया जैविक खेती प्रारंभ कर दी।नतीजा सामने है।किसानों का कहना था कि पहले रासायनिक खाद दवा का प्रयोग खेतों में करते थे।तभी सब्जियां सुंदर एवं पुष्ट होती थी।पहले दस कट्ठा सब्जी खेती में लागत 20 हजार आती थी। अब दो से तीन हजार लागत आ रहा है। जिसे देखने समझने अन्य जगहों के किसान भी हम लोगों का फसल देखने आते हैं।कहा एक ही खेत में भिन्डी, करैला, परवल आदि आठ तरह की सब्जी की फसल आप देख सकते हैं।कई लोगों ने तो घर के आंगन में सब्जी उपजा कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।
कहते हैं कृषि पदाधिकारी।
इस संबंध में बात करने पर प्रखंड कृषि पदाधिकारी बताते हैं कि जैविक खेती भारतीय किसानों के पौराणिक खेती बारी के तरीकों का वैज्ञानिक वर्जन है। जैविक पोषक का छिड़काव सब्जियों की खेती पर ज्यादा फायदेमंद साबित हो रहा है।खेतों में इससे उर्वरा शक्ति बढ़ती है और मित्र किट के प्रजनन में सहायक है।अजीत कुमार जैविक खेती के लिए जो भी कुछ किये हैं वह एक मिसाल है। इसकी प्रेरणा दें हम लोग अन्य किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।सरकारी अनुदान भी दिया जा रहा है

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