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मैं हॉस्टल हूँ या अनाथालय

ब्यूरो रिपोर्ट /राम सुखित सहनी
तूँ हॉस्टल नहीं ……..अनाथालय है तूँ …..
जी हाँ :– मैं हॉस्टल नहीं ….अनाथालय हूँ मैं …
जुल्मी बड़ा दुखदायक हूँ मैं ,
है प्यार क्या , मुझको क्या खबर,
बस यार नफरत के लायक हूँ मैं !
कलमकार की करूण पुकार :–
हॉस्टल के पंछी रे~~~
तेरा दर्द न जाने कोई –२
बाहर से तुम खामोश रहे तुम, भीतर भीतर रोय…
तेरा दर्द न जाने कोय–२
चुपके – चुपके रोने वाले,
रखना छुपा के दिल के छाले रे …
ये हॉस्टल की रीति है पगले ,कोई ना तेरा होय..
तेरा दर्द न जाने कोय–२
कह न सका तूँ ,अपनी कहानी ,
तेरी भी पंछी ..क्या जिंदगानी रे…
“” सुखीत “‘ ने तेरी कथा लिखी रे.–२
आँसू में कलम डुबोए..
तेरा दर्द न जाने कोय ” ।

हर  किसी को जिंदगी में एक बार हॉस्‍टल लाइफ जरूर जीनी चाहिए।”
ये स्‍टेटमेंट किसी महापुरुष का नहीं बल्कि हॉस्‍टल से निकलने वाले एक  हॉस्‍टलर का होता है। घ्‍ार से दूर हॉस्‍टल एक ऐसी दुनिया है जहां खुशी और गम दोनों मिलते हैं और इनके साथ हम जिंदगी जीना सीख जाते हैं। जानें आखिर क्‍यों होती है हॉस्‍टल लाइफ हर किसी के लिए इतनी खास…………

हॉस्‍टल का खाना :—————-

हॉस्‍टल आने से पहले खाने को लेकर हमारे ढेरों नखरे होते हैं। हम आलू तो खाते ह‍ैं लेकिन लौकी नहीं, दाल में जरूरत से ज्‍यादा पानी और मोटे चावल,जली रोटी, हमारा मूड खराब कर देते हैं। लेकिन हॉस्‍टल आने पर आपके नखरे कब हवा हो जाते हैं आपको खुद भी पता नहीं चलता । हॉस्‍टल में आपसे पूछ‍कर मेन्‍यू नहीं बनाया जाता है। इसलिए जब जो परोसा जाए उसे आपको खाना ही होगा। शुरुआती दौर में तो कइयों के नखरे जस के तस रहते हैं लेकिन ए‍क महीना पूरा हुआ नहीं कि सबकी अक्‍ल ठिकाने अा जाती है। हम सबकुछ खाने लगते हैं। वैसे तो हॉस्‍टल का खाना कभी स्वादिष्ट नहीं होता है। फिर भी अच्‍छा लगता है।

हॉस्‍टल के सख्‍त नियम :——–

सबसे पहला रूल जो हॉस्‍टल में घुसने के साथ बताया जाता है वो है रात 10 बजे के पहले आपको हर हाल में हॉस्‍टल पहुँचना होगा। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपके माता – पिता से बात करने के बाद ही दरवाजे खोले जाएँगे। इस नियम को सुनकर माता – पिता जितने खुश होतें हैं वहीं रहने वाले उतने हीं दुखी।दोपहर का खाना 1 बजे से मिलना शुरू होगा और रात का 8 बजे। अगर आप किसी कारण देरी करते हैं तो उसकी जानकारी दें वरना खाना खत्‍म। इस जगह सबसे ज्‍यादा काम आती है बिस्किट,जिसे खाकर गुजारा करना पड़ता है।

खास बात :—————-

यहां आपको किसी भी तरह के इलेक्ट्रिॉनिक उपकरणों के इस्‍तेमाल की मनाही होती है।कहीं आपने छुपा के रखी है और इसके बारे में वॉर्डन को पता चल गया तो , तो बस खैर नहीं है।
कहीं कहीं तो धरल्ले से रात में मोबाईल में  मूवी गाना सुनते व देखते नजर आते हैं।इससे पढ़ने वाले बच्चे को काफी दिक्कतें झेलनी पड़ती है।हॉस्‍टल में बाहर के लोगों से मिलने-जुलने पर कड़े नियम होते हैं। आपसे मिलने वही आ सकता है जिसका नाम रजिस्‍टर में दर्ज  है। कोई और आया तो आपसे पहले आपके गार्जियन को पता चल जाता है कि आपसे मिलने कोई आया था।

दोस्‍ती-यारी :—————–
हॉस्‍टल की यारी-दोस्‍ती एक ऐसी चीज है जो आपको हर हाल में खुश रहना सिखा देती है। इस दोस्‍ती को अाप सारी-उम्र याद रखते हैं। आपके साथ रहने वाले ही आपके सबसे करीबी हो जाता है। रात में घर की याद आए तब आपके रूम पार्टनर ही आपके आँसू पोंछते हैं।कभी कभी तो नजारा देखने लायक होता है।जब किसी एक को चुप कराने में दूसरे का इमोशनल ड्रामा शुरू हो जाता है । दोस्‍ती-यारी तो यहाँ ऐसे निभाई जाती है जैसे जन्‍मों से एक-दूसरे को जानते हों।

आजादी और मौज-मस्‍ती :——

घर में उठने का और सोने का नियम होता है। जिसे सबसे पहले हॉस्‍टल में आकर स्‍टूडेंट्स तोड़ते हैं।यहाँ दिन शुरू होता है रात में और रात शुरू होती है दिन में। अब सवाल ये है कि रात में होता क्‍या है तो जवाब में हर हॉस्‍टलर यही कहेगा कि गाने गाना, मूवी देखना. यही नहीं 10 बजे खाना खा लेने के बाद दोबारा रात में 2 बजे उठकर कुछ चुटुर-पुटर खाना आम बात होती है। यही नहीं ‘जुगाड़’ से चोरी-छिपे चाय बनाने का भी अपना अलग ही मजा होता है। सबसे कॉमन बात कि सारे हॉस्‍टलर्स कपड़े रात में ही धोने बैठते हैं।

वॉर्डन की तुनकमिजाजी :———

यहाँ अगर कोई सबसे ज्‍यादा आँखों को अखरता है तो वो होता है हॉस्‍टल का वॉर्डन । वो एक ऐसा सदस्‍य होती है जिसके अंदर हिटलर की आत्‍मा बसी होती है। बात की शुरुआत और अंत सिर्फ कायदे-कानून के इर्द-गिर्द ही घूमती है। शुरू-शुरू में अापको वॉर्डन बिलकुल भी नहीं भाता, लेकिन समय बीतने के साथ आप उसके आदी हो जाते हैं और उसकी तकलीफों को भी समझने लगते हैं। यही नहीं वॉर्डन की आवाज में भी थोड़ी सी नरमी आने लगती है।

अजब – गजब घटना :———

“घर से लौटने पर जब मचती है लूट ”
सबसे ज्‍यादा इंतजार हॉस्‍टलर्स को इस बात का होता है कि घर से कौन आया है। घर से आने का मतलब आपके साथ खाने की तमाम चीजें आईं होगी। बस फिर क्‍या आपके बैग की पूरी चेकिंग मिनटों में हो जाती है। आप रास्‍ते की थकान मिटाने के लिए नहाने जाते हैं अौर जब वापस आते हैं तब तक मां के हाथ के बने विभिन्न प्रकार के खाद्द सामग्री जैसे :– बेसन के लड्ड, घी में बना पिरिकिया,मठरी और भुजा काजू किस – मिस व  नमकीन गायब हो चुकी होती है।

अतः ऑल टाइम अलर्ट :——–

यहाँ रहने वाले हर बंदे को सचेत रहने की आदत पड़ जाती है। आपके पास कितना सामान है और कैसे संभाल कर रखना है इस बात का ध्‍यान रखना होता है।

मनी मैनेजमेंट :———–

हॉस्‍टल में आकर आप मनी मैनेजमेंट सीख जाते हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि अचानक से एहसास होता है कि हर चीज में बड़े पैसे खर्च होते हैं जैसे :–नामांकन शुल्क,मासिक शुल्क,भोजन,ड्रेस,पंखा,किताब-कॉपी, कलम,इसलिए चीप एंड बेस्‍ट रास्‍ता निकालने में हॉस्‍टलर्स का जवाब नहीं होता। वैसे, जब भी बीच में जरूरत पड़े आप बड़े अाराम से घर से पैसे मंगा सकते हैं। घरवाले भी हमेशा एक्‍सट्रा पैसे भेजते हैं ताकि घर से दूर आपको कोई परेशानी न हो।

हॉस्‍टल के कपड़े :———

इस बात को आपने पहले गौर किया नहीं हो कि घर से आने से पहले हम कपड़े पूरे तौर-तरीकों से पहनते हैं। यहां आकर पजामा-टीशर्ट के अलावा कोई और समझ नहीं आता है। सबसे ज्‍यादा सलीके से हॉस्‍टलर्स तैयार तब होते हैं जब घरवाले उनसे मिलने आते हैं। उस दौरान तो शराफत इस कदर टपकती है कि बस पूछो ही मत।
“बच्चे मन के सच्चे सारे जग के राजदुलारे, ये वो नन्हे फ़ूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे”, बच्चों के ऊपर लिखा गया बहुत पुराना गीत याद आ गया । जिसमें उनके मन को भी बताया गया है कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं और उनका मन दर्पण की तरह साफ़ होता है कोई कपट नहीं कोई लालच नहीं।
क्या होस्टल में बच्चे ज्यादा पढ़ते हैं या माता पिता यह सोचकर भेज देते हैं कि कम से कम उनकी तरफ़ से पढ़ाई लिखाई करवाने की जिम्मेदारी खत्म, केवल फ़ीस भरी और  होस्टल में डाल दिया। होस्टल  में डालने की और भी कोई वजह हो सकती है। खैर मुझे तो एक बात समझ में नहीं आती कि केवल जो बच्चे होस्टल में रहते हैं, वो बचपन से ही भला बुरा समझने लगते हैं, और जो घर में रहते हैं वे धीरे धीरे जिंदगी के अनुभवों से सीखते हैं?
होस्टल में रहने वाले बच्चों का जीवन बिल्कुल संयमित होता है ?
समय पर सारे कार्य करने होते हैं अतः घर पर रहने वाले बच्चों के लिये आजादी रहती है वे कुछ भी कर सकते हैं, वे दीन दुनिया और सामाजिकता में अपने आप को लबालब पाते हैं, और होस्टल में रहने वाले बच्चों को यह सब तो नहीं मिल पाता पर जो हम उम्र बच्चों का साथ और अपने ही कक्षा के बच्चों से मस्ती करने को मिलती है वो घर वाले बच्चों को नहीं मिल पाती।

हमारे एक दोस्त हैं उन्होंने एक प्रसिद्ध स्कूल में अपने बच्चे को डालने की सोची कि हॉस्टल भी है और फ़ीस भी बहुत थी, स्कूल भी काफ़ी अच्छा था, परंतु अंतिम समय पर माता – पिता अपने दिल के हाथों मजबूर हो गये और बच्चे को हॉस्टल में नहीं डाला।
तो क्या हॉस्टल में डालने वाले माता – पिता अपने बच्चों से प्यार नहीं करते ? ऐसा तो कतई नहीं है, और मैं भी इस बात से सहमत नहीं हूँ परंतु ऐसी क्या चीज है जो माता – पिता को हॉस्टल में डालने पर मजबूर करती है ? विश्लेषण की आवश्यकता है ?
* घर ,टोला, मुहल्ला,का वातावरण अच्छा नहीं होना।
* अपने पास देख – रेख के लिए समय नहीं होना।
* अमीर घराने के हैं लोग क्या कहेंगे यानी प्रतिष्ठे प्राण गवांना।
* बच्चों को सही व सुसंस्कार देना।
* बड़ा कोई ऑफ़सर , इंजीनियर, डाक्टर, साईनटिस्ट बगैरह बनाना।
* बच्चे नटखट व बदमाश होने पर उससे छुटकारा पाना।
* स्कूल में अच्छी पढ़ाई न होना।
इत्यादी हॉस्टल भेजने का कारण हो सकते हैं।

एक नजर वैदिक हॉस्टल पर :——————–

प्राचीन समय में अर्थात्‌ वैदिक काल में शिष्य गुरु के पास रहकर विद्या प्राप्त किया करता था। हमारे ऋषियों की दृष्टि में विद्या वही है जो मनुष्य को अज्ञान के बन्धन से मुक्त करा दे। भारत शिक्षा के क्षेत्र में जगत्‌ गुरु कहलाया था। संसार में सबसे पहले सभ्यता संस्कृति और शिक्षा का उदय भारत की ही भूमि पर हुआ था। शिक्षा नगर के शोर से दूर महर्षियों के गुरुकुलों और आश्रमों में दी जाती थी। छात्र पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ गुरुजनों के पास रहकर विज्ञान, नीति, युद्धकला, वेद और शास्त्रों का अध्ययन करता था। वर्तमान में शिक्षा प्रणाली राष्ट्र के लिए एक अभिशाप बनाती जा रही है।
बताते चलें कि …….
राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी जी ने कहा था कि- “यदि मेरा बस चले तो मैं इस शिक्षा को जड़मूल से बदल दूँ और शिक्षा को समाज की आवश्यकता के साथ जोड़ दूँ। बच्चों को जैसी शिक्षा दी जायेगी वैसे ही बनेंगे।” इन्हें आज ऐसी शिक्षा दी जा रही है जिससे हमारे देशभक्तों, विद्वानों, ऋषि-मुनियों का इतिहास साफ हो रहा है। आज नंगे नाच, क्लबों और सिनेमाओं की शिक्षा ने युवा पीढी का चरित्र गिरा दिया है।   शिष्ट पढे-लिखे मनुष्य का चरित्र से वंचित हो जाना ठीक नहीं है। आचारहीन व पुनन्ति वेदा:। अर्थात्‌ चरित्रहीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। जिस प्रकार सोने के लिए कान्ति और फूल के लिए सुगन्धि का होना आवश्यक है उसी प्रकार मनुष्य के लिए सदाचार का होना आवश्यक है।
इस देश में जितनी शिक्षा बढ रही है उतना ही चरित्र लोगों का घटता जा रहा है। सदाचार आकाश से नहीं गिरता, अपितु यह मानव के अन्दर बचपन से पैदा किया जाता है। यदि अब भी भारत को अपना पूर्व गौरव प्राप्त करना है तो सभी पाठशालाओं, विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों  हॉस्टलों के प्रत्येक छात्र तथा छात्रा को नैतिक शिक्षा दी जाए। आज की शिक्षा कलम के कारीगर बनाकर प्रमाण-पत्र तो दे देती है परन्तु जीवन क्षेत्र में उतरने का सबल आधार नहीं देती।
अतः अध्यापक पढाकर खुश नहीं, विद्यार्थी पढकर खुश नहीं, विश्वविद्यालय और बोर्ड अपने कार्यों में दृढ नहीं। सभी क्षेत्रों में अवहेलना और कर्तव्य-हीनता पनपती जा रही है। जब कुएं में ही पानी नहीं तब बाल्टी में क्या आएगा! जो अध्यापक स्वयं गुणवान नहीं हैं वे बच्चों को जिन्होंने भविष्य में राष्ट्रनिर्माता बनना है, क्या अच्छी शिक्षा दे सकते हैं?
आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने राष्ट्र को ऐसे घेरे में लाकर खडा कर दिया है जहाँ केवल पेट की पूर्ति दिखाई देती है। जीवन की सच्चाई का गला घोंटने वाली यह शिक्षा जिन्दगी जीने का नहीं, अपितु जिन्दगी रोने का पाठ पढाती है। सिर पर उपाधियों का बोझ लिए हुए जीवन की सड़क पर चलता-चलता थक जाता है, परन्तु उपाधियों की गठरी उसे ठीक तरह से जीना नहीं सिखा पाती।
वाणी, कर्म और विचार की शुद्धि का पाना ही शिक्षा का परम लक्ष्य है। लेकिन आज शिक्षा भ्रष्ट हो चुकी है। विद्यार्थियों को शुद्ध विचार, चरित्र, नई चेतना, नई प्रेरणा तथा नया दृष्टिकोण प्रदान करना शिक्षा का मुख्य लक्ष्य होता है । परन्तु आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने देश को अन्धकार में ले जाकर नाश के कगार पर खड़ा कर दिया है। शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। इनके बीच तनाव ही तनाव देखने को मिलता है।

शिक्षा का उद्‌देश्य :——–

अनुशासन, आदर-सत्कार की भावना, नम्रता और चरित्र का निर्माण होता है, जो मानव का सर्वोपरि धन है। दया, क्षमा, सन्तोष, सहानुभूति, आत्मसंयम, परोपकार, स्वदेश भक्ति आदि का ज्ञान होना आज के विद्यार्थियों के लिए बहुत आवश्यक है। क्योंकि विद्यार्थी ही किसी समाज या राष्ट्र की रीढ की हड्डी होते हैं।
आज के दौड़ में धन के लोभी ,शिक्षा संस्थान, छात्रावास को व्यसायिक दृष्टिकोण से कू-कूर मुत्ते की भाँति खोलते जा रहे हैं।सौ में एक को छोड़ ,सभी रुपए  ऐठने में लगे रहते हैं।

“रहने को घर नहीं,सोने को बिस्तर नहीं ,अपना हॉस्टल है सबसे प्यारा।इसमें बच्चों , तेरे भविष्य का सिर्फ भगवान है रखवाला।”

सावधान ??
हॉस्टल सह स्कूल में बच्चों को पढाने वाले माता- पिता ,
आपके बच्चे ,आपके हीं नहीं – देश का भी भविष्य है।
अतः जाँच – परख कर अपने  भविष्य का नामांकन सही हॉस्टल एवं स्कूल में करावें।
अन्यथा बच्चे से भी हाथ धोना पड़ सकता है।

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